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गृहस्थाश्रम में नाम स्मरण

आप लोग संत को ढूंढिए नहीं, परंतु पैदा कीजिए । चारों आश्रमों (ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम) में गृहस्थाश्रम सबसे श्रेष्ठ है क्योंकि तीनों आश्रम इसके आधारित है । अत्रि-अनसूया, वशिष्ठ-अरुंधति, जमदग्नि-रेणुका, मनु-शतरूपा जैसे महान गृहस्थी यदि न हो तो भगवान और सिद्ध-संत कैसे पधारे ? ब्रह्मचारी इत्यादि के नियम सख्त है जबकि गृहस्थी को थोडी छूट है । गृहस्थी सुबह-शाम मात्र २० या ३० मिनट का भजन करे तो भी बहुत है क्योंकि परिवार-समाज की जिम्मेदारी उसके ऊपर है । इसके बारे में एक प्रचलित कथा है ।

नारदमुनि भगवान के दर्शन के लिए गए । श्री प्रभु बोले कि - "मुझे भक्त प्राण से भी प्यारे है। मृत्यु लोक में शांति नगर में रह रहा भोलाराम मेरा प्रिय भक्त है ।" यह सुनकर नारद मुनि में ईर्ष्या, क्रोध,अहंकार के मिश्रित भाव पैदा हुए । जल्दी-जल्दी दर्शन करके शांति नगर में सुबह-सुबह आके देखा तो भोलाराम खेत में जाने की तैयारी में था । घर से निकलने से पहले देवघर में जाकर पांच मिनिट श्री प्रभु के नाम का स्मरण करके भोलाराम बैल गाड़ी लेके खेत गया और आग उगलती गरमी में खेत में काम किया । शाम को घर वापस आकर हाथ पैर धो कर देवघर में जाकर श्री प्रभु का फिर से पांच मिनिट स्मरण किया और खाना खाकर सो गया ।

नारद मुनि को तो दिन से ज्यादा रात में पसीना आने लगा और सोचने लगे कि - "में चौबीस घंटे नारायण...नारायण का कीर्तन करता हूँ, फिर भी प्रभु को प्रिय नहीं और वो भोलाराम केवल दस मिनट स्मरण करके भी प्रिय ?" श्रीप्रभु तो अंतर्यामी है । भक्तो का अहंकार जिनका भोजन है ऐसे श्री प्रभु ने अजब-गजब की लीला रची ।

एक बार श्रीप्रभु और नारदजी विहार कर रहे थे ।श्रीप्रभु बोले कि - " नारद, मेरे पेट में दर्द हो रहा है" देवो और दानवों को सलाह देनेवाले नारदजी पूछ रहे हैं - "प्रभु ! कोई इलाज?" श्रीहरि बोले कि - "शिव मेरे इष्ट देव है, इसीलिए अगर कोई तिल के तेल की आकंठ भरी हुई कटोरी लेके शिवमन्दिर की तीन प्रदक्षिणा करे और उस तेल से मेरे पेट की मालिश करे तो दर्द चला जायेगा, लेकिन शर्त ये है कि - उस कटोरी में से तेल की एक बूंद भी नीचे गिरनी नही चाहिए । अगर गिर गई तो तेल काम नही करेगा ।"

माया के प्रभाव से उच्च कोटि के भक्त भी ये भूल जाते है कि भला प्रभु को कभी पेट दर्द हो सकता है ? नारदमुनि तुरन्त ही तैयार हो गए । तुरंत ही कटोरी तेल की व्यवस्था की और शिव मंदिर की प्रदक्षिणा शुरू की । तीन प्रदक्षिणा में तो काफी समय बीत गया । श्रीहरि मन ही मन मुस्कुरा रहे है । नारद मुनि धीरे कदमों से आ रहे है और श्रीहरि की सेवा के लिए तत्पर हुए तब श्रीहरि बोले के, "मेरे पेट का दर्द तो चला गया" नारद मुनि ने पूछा कि, "प्रभु ! बिना तेल लगाए कैसे मिटा ?"

श्रीहरि बोले कि - जब भक्तो को अभिमान जगता है तब मुझे पेट दर्द होता है, में सब सहन कर सकता हूँ लेकिन मेरा भक्त अहंकार करे ये सहन नही होता । आपको अहंकार था कि - "में रात-दिन कीर्तन करता हूँ और वो भोलाराम केवल दस मिनट स्मरण करता है फिर भी वो क्यों मुझे प्रिय है?? नारदमुनि ! में आपको पूछता हूँ कि, शिव मंदिर की तीन बार प्रदक्षिणा करते समय आपने कितनी बार मेरा नाम स्मरण किया ? श्री नारदमुनि बोले कि - "एक भी बार नहीं, अगर बोलूं और तेल गिर जाए तो काम में नही आता ।" श्रीहरि बोले कि - "आप इतने छोटे से काम में मुझे भूल गए और जिसके सिर पे संसार का जबरदस्त बोझ है, बहोत बड़ी जिम्मेदारी है वो सुबह-शाम मुझे प्रेम से याद करता है तो वो मुझे प्रिय होगा ही ना ?" नारदमुनि शरमिंदा हो गए और श्रीहरि को प्रणाम किया तब भक्त प्रिय ऐसे श्रीहरि ने नारद मुनि को प्रेमसे गले लगाया ।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र )



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